शनिवार, मई 24, 2008

हस्तमैथुन छोड़ना चाहता हूं.....

sir,bahut sarminda hoon. maine apne shareer ko khokhla kar liya hai. sabse chhipaya, lekin aap se chhipakar narak mein bhi vaas nahin hoga. aapne daroo-sharab, ganza, cigrette chudane ke nuskhe batayee. main ek insan hoon, jo roti-chabal, dal, sabji, fal, chhodkar dunia ka koi cheej nahee khata hoo. koi vyasan nahi hai, sivay, maasturbation ke. isne meri dunia ko tanha, akela, vyavan bana ke chod diya hai. kab se lagi ye aadat, theek theek yad nahi, itna yad hai kii kaksha saat mein main ye dushkarma karta tha. isko bhala bataane vale ko kahoonga kii bhagwan sadbuddhi de par main ise har bar chhodna chaha lekin chahkar bhi nahi chhod paya yadi apke pas koi yukti hai to please, mera uddhar karen aur mujhe maut ke moonh mein jane se bacha le.अनाम
भाईसाहब,आपका मेरे ऊपर तो विश्वास है लेकिन खुद के ऊपर विश्वास क्या बिलकुल समाप्त हो चुका है कि यदि मैंने कहा कि ये करो और ये मत करो तो वो ब्रह्मवाक्य हो जाएगा। सच तो ये है कि आपकी बुरी आदत शरीर से न जुड़ी हो कर मन से जुड़ी है। लेकिन यदि आपकी स्थिति ऐसी है कि आप इतने गहरे अपराधबोध से ग्रस्त हैं तो मैं जरुर आपका साथ दूंगा। आप पहले तो इस बात को सोचना बिलकुल बंद करिये कि आप जो कर रहे हैं वह आपके शरीर के लिये इतना भयंकर है कि आप मौत के मुंह में चले जाएंगे। लीजिये आपकी देह में उपजती झूठी कामचेतना को समाप्त करते हैं और आप निम औषधियों का सेवन करें - -
१ . धनिया पाउडर जो कि सब्जी-भाजी में डाला जाता है जिसे कि तमाम कम्पनियां बना कर पैकेट बंद कर के बेचती हैं, इस धनिया पाउडर को सौ ग्राम लेकर उसमें दस ग्राम कपुर और सौ ग्राम ही मिश्री मिला दीजिये और दिन में तीन बार आधा-आधा चम्मच पानी से सेवन करें।
२ . त्रिबंग भस्म एक रत्ती एक चम्मच मलाई के साथ दिन में दो बार सेवन करें।
पूजा-पाठ तथा व्यायाम पर ध्यान लगाएं, एकांत से बचें,अश्लील चिन्तन व ऐसे घासलेटी साहित्यादि से परहेज करें ये आपके लिये मीठे जहर से कम नहीं हैं। आप अगर मन में पक्का इरादा कर लें तो फिर आपको कोई भी उस ओर नहीं ले जा सकता क्योंकि शरीर आपका है और इसका नुकसान तो आपको ही भुगतना होगा। संगीत आदि में रुचि लीजिये। विवाह के लिए प्रयत्न करिये। ईश्वर आपके साथ है। आप जिस किसी भी व्यक्ति जैसे आपकी माताजी या गुरूजी को आदरणीय मानते हों बस मन में ये भावना रखिये कि वे चौबीसों घंटे आपको देख रहे हैं।

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