बुधवार, जून 18, 2008

सफेद दाग हैं, माताजी व बहन को भी हैं यानि कि आनुवांशिक......

एक महिला...उनकी उम्र २४ साल है और पिछले १२ सालोंसे सफ़ेद दाग नामकी बीमारी से पीड़ित हैं...उनकी माँ के पूरे शरीर में सफ़ेद दाग हैं... यानी बीमारी आनुवंशिक है..इनकी बहन भी देखते देखते पुरीतरह से सफ़ेद हो गई है...और इन मित्र के दोनों पैरों में लम्बाई में सफ़ेददाग हैं...खासकर उँगलियों की हड्डियाँ जहाँ से उंगलियाँ होती हैं....यानि उँगलियों के उभारों पर सफ़ेद दाग हैं..हाथ में लम्बे लम्बे चकत्ते हैं..इतना ही नही कई छोटे छोटे दाग पूरे शरीर में उभर रहे हैं...कुल मिलाकर शरीर का ३० फीसदी हिस्सा सफ़ेद दाग की चपेट में है....अभी आप ही की तरह एक मानवीय इंसान से मिलकर था जिसका मकसद भी जड़ीबूटियों के जरिये लोगों को ठीक करना है..वे बेहद काबिल भी लगे ...एक ख़ास बात जो उन्होंने बताई वो यह की अब ये दाग कभी ठीक नही हो सकते क्यूंकि ये बहुत पक्के हो चुके हैं... उन्होंने मेरी मित्र के हाथों में चिकोटीकाटी और उनको खूब दबाया पर अचरज की बात की उनमें न कोई निशाँ बना न कोई खून के दौरान का निशाँ था जैसा आम आदमी को अगर किया जाए तो वहाँ लाल हो जायेगा या निशाँ बन जायेगा...उन सज्जन ने बताया की त्वचा की जितनी परतें हैं वे सब प्रभावित हैं सफ़ेद दाग के रोग से...और नसों में खून का दौरानही नही हो रहा है...उन सज्जन ने कहा की जब खून का दौरान ही नही हो रहा त्वचा के उस स्थान में तो वहाँ कुछ होने के चांस बिल्कुल नहीहैं...उदाहरण देते हुए कहा की जैसे एक वायरस अपने आस पास की चीजों को प्रभावित करता है उसी तरह सफ़ेद दाग के चकत्ते भी बाकी बची त्वचा को प्रभावित कर सफ़ेद दाग फैला रहे हैं... वह इंसान अपनी समाजसेवा के लिए जाना जाता है और उसने कहा की डॉक्टर भले पैसा कमाने के लिए आपको टहलाते रहे पर इसका कोई इलाज नही है...अभी इनके चेहरे पर एक स्पॉट है जो इनके मुताबिक आगे सफ़ेद दाग में बदल जायेगा... मेरी मित्र जो दुनिया की बेहतरीन इंसानों में हैं कई बार रो चुकीहैं परेशान हो चुकी हैं.......(उन सज्जन ने कहा कि लयूकोदेर्मा नामक पौधे का रस देंगे वह लगाने के लिए जिससे थोड़ा बहुत फायदा होगा)... पत्र काफ़ी विस्तार से है अतः आवश्यक जानकारी को ही लिया जा रहा है।
उपाय बताइये। धन्यवाद
अनाम
आपकी मित्र की समस्या को गहराई से समझा,निस्संदेह वे बहुत मानसिक पीड़ा का सामना कर रही हैं। आपने विस्तार से बताया है कि इन्हें ये रोग आनुवांशिक कारणों से हुआ है और वे कई जगह उपचार भी ले चुकी हैं। आपने ये भी लिखा कि किन्ही सज्जन ने उन्हें ल्युकोडर्मा नामक पौधे का रस देंगे जो कि उन्हें आंशिक लाभ देगा। जहां तक मेरी वनस्पति शास्त्र की जानकारी है इस नाम के किसी पौधे,पेड़ या लता आदि से मैं परिचित नहीं हूं क्या ये कोई विदेशी पौधा है? मेहरबानी करके उन सज्जन से इस विषय पर स्पष्ट जानकारी लेकर मुझे सूचित अवश्य करें और उन्हें बताएं कि यदि वे सचमुच सेवा का भाव रखते हैं तो आयुषवेद के माध्यम से उक्त जानकारी अधिकतम लोगों को लाभान्वित कर पाएगी। एक बात बताना अनिवार्य मानता हूं कि जिस प्रकार गंदे वस्त्र पर यदि हम कोई रंग करना चाहें तो वह ठीक से न चढ़ सकेगा इसलिये उसे धो-सुखा कर ही रंग करना सही तरीका है इसी तरह यदि जीर्ण हो चुके रोगों में शरीर का सम्यक शोधन न करा जाए तो दी हुई मूल्यवान से मूल्यवान औषधि व्यर्थ हो जाती है। देह के शोधन की प्रक्रिया कदाचित थोड़ी बड़ी सी लगेगी किन्तु इतना तो आपकी मित्र को करना होगा और संभव है कि आपको भी इसमें सहयोग करना पड़े। आयुर्वेद में देह के शोधन के लिये शास्त्रोक्त पद्धति है "पंचकर्म"। ये हैं -- स्नेहन,स्वेदन,वमन,विरेचन तथा मर्दन ; आवश्यकतानुसार इनमें से कभी-कभी किसी एक-दो या सभी कर्मो का प्रयोग करा जाता है। पहले आप इनको पंचकर्म के लिये मानसिक तौर पर तैयार कर लें व बताएं कि रोने से समस्याओं का हल नहीं मिलता अतः डट कर बीमारी से लड़ पड़ें ताकि आरोग्य जय कर सकें। सर्वप्रथम स्नेहन के लिये इन्हें पहले दिन नाश्ता करने के बाद पंचतिक्त घृत २५ ग्राम की मात्रा में बाकुची के काढ़े के साथ पिलाएं। बाकुची के काढ़े को बनाने के लिये १० ग्राम बाकुची के चूर्ण को दो कप पानी में उबालें व आधा रह जाने पर छान लें बस बन गया काढ़ा प्रयोग के लिये। दूसरे दिन से चौथे दिन तक ५० ग्राम की मात्रा में पंचतिक्त घृत पिलाएं। स्नान करने के बाद सारे शरीर पर बाकुची के तेल से कम से कम आधा घंटे कसकर रगड़-रगड़ कर मालिश करी जाए। ये पक्रिया कुल मिलाकर चार दिन जारी रखिये और इस दौरान पंचतिक्त घृत पिलाने के बाद आधा घंटे घूमे फिरें ताकि उस स्नेह द्रव्य का देह में संचार हो जाए यदि विश्राम करा तो कार्य व्यर्थ हो जाएगा और फलीभूत न होगा। दोपहर में जोर से भूख लगने पर पुराना चावल और दूध मिला कर दें उपचार काल तक यदि कुछ और जीभ के स्वाद के चक्कर में खाया तो मूर्खता होगी और प्यास लगने पर सादे पानी के स्थान पर जौ को पानी में उबाल कर ’बार्लीवाटर" तैयार कर लें वह दें। इसके बाद स्वेदन करना होगा यानि कि जैसे आजकल आधुनिक लोग "सोना बाथ" लेते हैं यानि कि पसीना लाकर त्वचागत दोषों को बाहर आने को प्रेरित करना। इसके लिये इन्म चीजें प्रत्येक १०० ग्राम लें -- नीम के पत्ते + बेर के पत्ते + खैर(जिससे कत्था बनता है) की छाल + इन्द्रायण के फल + हल्दी + बाकुची + चित्रक + आक(इसे मदार या अकवन या अकउआ या अकौड़ा भी कहते हैं) के पत्ते + दशमूल का चूर्ण(ये बना हुआ आयुर्वेदिक दवा विक्रेताओं के पास मिल जाएगा) लेकर हलका मोटा सा कूट लें। इस मिश्रण को दस लीटर पानी में डालें(आप आवश्यकतानुसार दवा इसी अनुपात में कम कर सकते हैं) प्रेशर कुकर के ऊपर की सीटी को निकाल कर उसके स्थान पर एक ट्यूब फ़िट कर दें ताकि मिश्रण के उबलने पर निकलने वाली भाप को हम एक स्थान पर उपयोग कर सकें इस ट्यूब के द्वारा उस भाप को प्रभावित स्थान पर छोड़ें जैसे कि बच्चों को जुकाम होने पर या स्त्रियां सौंदर्योपचार लेते समय वेपर्स लेती हैं,ठीक उसी तरह करना है कि प्रभावित अंग पर वह औषधीय भाप अपना प्रभाव दिखा सके। यदि बतायी गयी औषधियों में से कोई न मिले तो जितनी मिलें उन्हें ही प्रयोग कर लें। बाद में आधे घंटे के स्वेदन के बाद कुकर में जो पदार्थ बचा है उसे एक कपड़े की पोटली में बांध कर शरीर पर सेंके। यह कार्य आप चार दिन तक करें। अब रोगी को वमन कराना है ताकि जो दोष आमाशय में आ गये हैं वमन से बाहर निकल सकें। इसके लिये अगले दिन सुबह सुबह नित्य कर्म से फ़ारिग होकर बिलकुल गले तक भर कर गन्ने का रस पिलाएं और इतना पिलाएं कि पेट तो भर जाए व अधिकता के कारण जी मिचलाने लगे कि अब उल्टी हो जाएगी ऐसे में गले में उंगली डाल कर उल्टी कर दें जिससे उत्क्लेष होकर सारा दोष वमन से बाहर आने को प्रेरित होगा। जब पेट के आहार के निकलने के बाद पीत औषधि व कुछ चिकनाई आदि निकल कर डकार आ जाए तो समझिये कि वमन पूर्ण हो गया। भूख लगने पर कोई भी फल का जूस दें तथा दोपहर में मूंग की एक दम पतली खिचड़ी दें व रात को भोजन में खिचड़ी,दलिया अथवा सत्तू दें। इस तरह से तीन दिन करें। अब आगे के चार दिन तक बस हल्का भोजन दें जिसमें साग आदि हो भारी भोजन वर्जित है यानि चार दिन तक देह को विश्राम देना है इसके बाद अब सुबह पहले की भांति पंचतिक्त घृत ५० ग्राम की मात्रा में बाकुची के काढ़े के साथ पिलाएं व दो घन्टे बाद दो चम्मच गन्धर्व हरीतकी नामक औषधि योग को एक कप हलके गर्म जल में घोल कर पिला दें इससे कुछ देर बाद तीन चार दस्त होंगे जब भूख लगे तो मूंग की दाल की खिचड़ी व दलिया साबूदाना आदि हल्का आहार दें। इस तरह अगले दिन भी करें यानि विरेचन कर्म दो दिन करना है फिर बंद कर दें। अगर पेट में दस्तों के कारण दर्द हो तो एक गोली हाजमोला दे सकते हैं।
इस क्रम को यानि पंचकर्म को करने के बाद अब बारी आती है औषधि उपचार की जिसके लिये उन्हें निम्न औषधियां नियमानुसार दें --
१ . पंचतिक्त घृत गुग्गुल एक गोली + आरोग्यवर्धिनी बटी दो गोली + उदयभास्कर रस एक गोली दिन में तीन बार चार चम्मच खदिरारिष्ट+महामंजिष्ठादि क्वाथ के मिश्रण से दें,खाली पेट न दें।
२ . बाकुची चूर्ण १०० ग्राम + रस माणिक्य ५० ग्राम मिला कर जोर से घॊंट लें व दिन में दो बार इसमें से एक-एक ग्राम मात्रा लेकर गोमूत्र के साथ दिन में दो बार सेवन कराएं।
३ . बाकुची २० ग्राम + स्वर्णमाक्षिक भस्म ५ ग्राम + लौह भस्म ३ ग्राम + रसौत ४ ग्राम + काले तिल १० ग्राम + चित्रक ५ ग्राम; इन सबको घॊंट कर मिलालें व दो ग्राम मात्रा को गोमूत्र के साथ दिन में तीन बार सेवन करें, खाली पेट दवा न लें।
४ . अच्छी मेंहदी के ताजे पत्ते ४० ग्राम + अदरक का रस १० ग्राम + सोना गेरू(लाल गेरू) ४० ग्राम + बाकुची १० ग्राम मिला कर कस कर पीस कर गोला बनाकर सुखा लें व दिन में कम से कम दो बार प्रभावित अंग पर अदरक के रस में घिस कर लेप करें।
इस पूरे उपचार को पूर्ण लाभ होने तक जारी रखें,धैर्य रखें जल्दबाजी करके बार बार दवा और चिकित्सक बदलना लाभकारी नहीं होता। मूली,मछली, बैंगन, आलू,सरसों का तेल, गुड़, खटाई, मसूर, चायनीज व्यंजन, बाजारू साफ़्ट ड्रिंक्स का सर्वथा परहेज़ करें। यकीन करिये कि आरोग्य प्राप्त होगा व पुनः स्त्रियोचित सौन्दर्य की प्राप्ति होगी। मेरी तरफ़ से बहन को ये आयुर्वेद पर विश्वास के साथ आश्वासन है।

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